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Saturday 24 September 2016

यदि जीवन में आती हो धन संबंधी समस्याएं तो पूर्णमासी को करें यह उपाय कभी नहीं होगी धन की कमी



जिस भी व्यक्ति को जीवन में धन सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है उन्हें पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के समय चन्द्रमा को कच्चे दूध में चीनी और चावल मिलाकर निम्न मन्त्र का जप करते हुए अर्ध्य देना चाहिए ।

  "ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमासे नम:॥ "

अथवा

"ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:।। "


 इससे धीरे धीरे उसकी आर्थिक समस्याओं का निराकरण होता है ।



दीपावली की रात्रि को करें यह अमोघ उपाय - पूरे साल होती रहेगी धनवर्षा और मिलेगी धनहानि और कर्ज से मुक्ति



अमावस्या /(दीपावली) की रात्रि में 12 बजे अपने दाहिने हाथ में काली राई लेकर अपने घर की छत पर तीन चक्कर उलटे काटे, फिर दसो दिशाओं में हाथ की राई के दाने

 "ऊँ हीं ऋणमोचने स्वाहा"॥

 मन्त्र का जप करते हुए फेंकते जाय, इस उपाय से धन हानि बंद होती है ,ऋण के उतरने के योग प्रबल होते है। यह बहुत ही अमोघ प्रयोग है इसे किसी भी अमावस्या को किया जा सकता है लेकिन दीवाली की रात में इसे करने से शीघ्र ही फल मिलता है।



Sunday 11 September 2016

नींबू का यह आसान टोटका समाप्त करता है घर के सभी अनिष्ट - सुख समृद्धि आरोग्य और सफलता के लिए जरूर करें





किसी भी दिन विशेष कर मंगल और शनिवार को एक हरा नींबू लें और उसे  घर के चारों कोनों में दक्षिणावर्त दिशा यानि क्लॉक वाइज घुमाएं फिर किसी निर्जन स्थान पर जाकर उस नींबू के चार टुकड़े कर दें और चारों दिशाओं में एक एक टुकड़ा फेंक दें और घर वापस आ जाएं।  ध्यान रहे न तो आप पीछे मुड़कर देखें न ही किसी से बात करें न ही कोई आपको यह टोटका करते देखे या टोके। इस उपाय को करने से घर के सभी अनिष्ट दूर होते है और सुख समृद्धि आरोग्य और सफलता प्राप्त होती है। 

व्यापार में अधिकाधिक लाभ पाने के लिए शनिवार - रविवार को करें यह सिद्ध टोटका



आप अपने व्यापार में अधिक पैसा प्राप्त करना चाहते हैं और चाहते हैं की आपके व्यापार की बिक्री बढ़ जाए तो आप वट वृक्ष की लता को शनिवार के दिन जाकर निमंत्रण दे आएं। (वृक्ष की जड़ के पास एक पान, सुपारी और एक पैसा रख आएं) रविवार के दिन प्रातः काल जाकर उसकी एक जटा तोड़ लाएं, पीछे मुड़कर न देखें। उस जटा को घर लाकर गुग्गल की धूनी दें तथा 101 बार इस मंत्र का जप करें-

 ॐ नमो चण्ड अलसुर स्वाहा।


इस उपाय को करने से जल्द ही आपकी आमदनी में इजाफा होगा।





Saturday 10 September 2016

बेशुमार बरक्कत और समृद्धि के लिए रसोई में करें यह अतिगुप्त टोटका




यदि आप चाहते हैं की आपके घर में बरक्कत होती रहे और धन सम्पदा से आपका घर हमेशा परिपूर्ण रहे तो रात्रि में भोजन के बाद तथा जूठे बर्तनों आदि की सफाई के बाद रसोई समेटकर एक चाँदी की कटोरी में लौंग और कपूर मिला कर एकसाथ जला दें। ऐसा प्रतिदिन करते रहें। यह कार्य घर की सबसे बुजुर्ग महिला या घर की मालकिन करे तो अतिउत्तम रहता है। इस उपाय के करने से दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति होती है घर धन धान्य से पूर्ण रहता है और कभी किसी तरह की कमी नहीं होती। 

बाथरूम में बस यह २ रूपये की चीज ऐसे रख दें शान्त होगा राहु , केतु और काल सर्प दोष




राहु और केतु छाया ग्रह है किन्तु यदि यह खराब स्थिति में होते हैं तो मनुष्य का जीवन कष्टमय हो जाता है।  यदि कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं तो यह स्थिति और भी कष्टदायी होती है इस प्रकार निर्मित योग को काल सर्प दोष कहते हैं। इस प्रकार राहु या केतु के अनिष्ट को दूर करने के लिए या काल सर्प दोष में राहत पाने के लिए एक दो टुकड़े कपूर को बाथरूम में रख देना चाहिए इससे इन सभी स्थितियों में राहु और केतु के बुरे प्रभाव में राहत मिलती है। यह उपाय परीक्षित है। 

क्या आपके घर में है गंगा जल - अगर हाँ तो भूल से भी न करें यह अपराध शिव जी देते हैं दण्ड



गंगा जल का महत्त्व सभी जानते हैं हिन्दू धर्म और संस्कृति में इसका विशेष महत्त्व है।  कहा जाता है की घर में पवित्र नदियों का जल संग्रहित करके रखना चाहिए उसमें भी गंगा जी को नदियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।  जन्म के बाद घर की शुद्धि करनी हो या मरणासन्न व्यक्ति को सद्गति के लिए गंगा जल पिलाना हो जन्म से मृत्यु तक गंगा जल का उपयोग किया जाता है किन्तु अनजाने में अक्सर हम गंगा जल के रख रखाव में कुछ गलतियाँ करते हैं जो अनजाने में किया गया अपराध है और इसके लिए हमें दण्ड भी भोगना पड़ सकता है यह गलतियां इस प्रकार हैं :-

१:- गंगा जल को हमेशा पवित्र स्थान पर ही रखें गन्दी जगह पर नहीं और समय समय पर उस स्थान की सफाई भी करें।

२:- गंगा जल और अन्य पवित्र नदियों के जल को हमेशा ईशान कोण में ही रखें।

३:- कभी भी गंगा जल को चर्म या प्लास्टिक के पात्र में नहीं रखना चाहिए हमेशा तांबे चांदी य अन्य धातुओं से बने पात्र में ही रखें।

४:- गंगा जल को जूठे हाथों से छूना वर्जित है।

५:- जिस कमरे में गंगा जल रखा हो वहाँ मांस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए उचित होगा की गंगा जल को पूजाघर में रखें।

सावधान - जूते चप्पलों से जुड़ी यह आदत लाती है प्रबल दुर्भाग्य और दरिद्रता




जूते चप्पल हमारी दैनिक जीवनचर्या का अहम हिस्सा हैं किन्तु आपकी एक लापरवाही इन्हीं जूते - चप्पलों को आपके दुर्भाग्य का कारण बना सकती है अक्सर हम दैनिक उपयोग करने वाले या कभी - कभी प्रयोग में आने वाले जूते चप्पलों को बेड या पलंग के नीचे रख देते हैं वास्तु के अनुसार ऐसा करना गलत है और वास्तु दोष उत्पन्न करता है। जिस पलंग के नीचे जूते चप्पल रखे होते हैं भले ही वो नए क्यों न हो उस पलंग पर सोने वाले का दुर्भाग्य जागृत होता है और लक्ष्मी रूठ जाती हैं साथ ही मानसिक और शारीरिक रोग भी व्यक्ति को घेर लेते हैं अतः कभी भूल कर भी पलंग या बेड के नीचे जूते चप्पल नहीं रखने चाहिए इसके लिए अलग प्रबंध करना चाहिए। 

Friday 9 September 2016

घर में समृद्धि लाता है - धातु से बना कछुआ करें आसान उपाय



कछुआ सुख समृद्धि का वाहक है और भगवान विष्णु के कछप अवतार  का प्रतीक है. माना जाता है की घर में धातु का जैसे सोना,चाँदी, पीतल आदि का  कछुआ रखने से घर में सुख समृद्धि आती है और धन का आगमन होता रहता है।  कछुआ आप अपने ड्राइंग रूम के ईशान कोण में रखें तो उत्तम रहेगा।  घर की शोभा में चार चाँद लगाता धातु का कछुआ आपकी आर्थिक उन्नति में भी सहायक होता है।  

Thursday 8 September 2016

मरणासन्न व्यक्ति को भी जीवन देने वाला सभी प्रकार की आधि - व्याधि ,रोग ,कष्ट , शोक , संताप आदि को हरने वाला श्री राम रक्षा स्तोत्र



यदि किसी भी प्रकार का कष्ट हो या कोई व्यक्ति बीमार हो चाहे वह मरणासन्न स्थिति में ही क्यों न हो श्री राम रक्षा स्तोत्र सभी समस्यों को समाप्त कर जीवन दान देने वाला है।  राम रक्षा स्त्रोत से पानी सिद्ध करके रोगी को पिलाया जा सकता है  इसके लिए ताम्बे के बर्तन में साफ़ पानी भरकर  केवल हाथ में पकड़ कर रखना है और साफ़ आसन पर श्री राम रक्षा यंत्र या श्री राम के चित्र के सामने बैठ कर श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ ११ बार करना है। इस समय पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करें और  अपनी दृष्टि पानी में रखें और महसूस करें कि आपकी सारी शक्ति पानी में जा रही है। इस समय अपना ध्यान श्री राम की स्तुति में लगाये रखें। मन्त्र बोलते समय प्रयास करें कि आपको हर वाक्य का अर्थ ज्ञात रहे।

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥
श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
अर्थ: — इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |
॥ अथ ध्यानम्‌ ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥
ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें | ॥ इति ध्यानम्‌ ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥
श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है |
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥
नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥
जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें |
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें |
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥
मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें |
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें |
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥
शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं |
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते |
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं |
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं |
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया |
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥
जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर (अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं |
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें |
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें |
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥
संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें |
संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें |
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं |
रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता |
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥
लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ |
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए |
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ |
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता |
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥
जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ |
लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ |
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ |
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥
मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ |
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥
मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं |
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥
‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ | श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ | हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
(शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

इस प्रकार सिद्ध किया हुआ जल रोगी को पिलाने से जरूर ही स्वास्थ्य लाभ मिलता है। 

Tuesday 6 September 2016

आर्थिक तंगी से मुक्ति के लिए सिर्फ ५ मिनट में करें यह असरदार उपाय - बिना किसी खर्चे के



मिट्टी का छोटा घड़ा या सुराही को पानी से भर कर घर की उत्तर दिशा में रखने से पैसों की तंगी नहीं होती। इन्हें खाली न रहने दें, जल के समाप्त होने पर दोबारा भर दें। इस काम में आपके सिर्फ ५ मिनट खर्च होंगे और धन का खर्च भी नहीं होगा लेकिन इसके प्रभाव बहुत ही अच्छे फल देने वाले होते हैं। 







बस एक मुट्ठी आटा चीटियों को इस विधि से दें तो रूठा हुआ भाग्य भी बदल जाता है चमकती किस्मत में



को यदि आटे में शक्कर मिलाकर खिलाते हैं तो यह आपके भाग्य का दरवाजा खोलने का काम करता है। यह उपाय लगातार करें तो फर्क जरूर दिखने लगेगा।


प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाता है यह अचूक टोटका



शनिवार या मंगलवार के दिन संध्याकाल में जब दोनों वक्त मिल रहे हों, तब एक लाल कपड़े में थोड़ा-सा सिंदूर, ताँबे का पैसा और काले तिल रखकर पोटली बना लें । इस पोटली को प्रेत-ग्रस्त रोेगी या जिस पर आपको संदेह हो की इसे वायव्य बाधा है के ऊपर सात बार घुमाकर किसी रेलवे लाइन अथवा सड़क के पार फेंककर पीछे मुड़कर देखे बिना लौट आवें । जाते समय रास्ते में किसी से बात न करें । इस टोटके से प्रेत- बाधा से मुक्ति की सम्भावना बनती है ।



Sunday 4 September 2016

गणेश चतुर्थी पर अवश्य पढें - श्री गणेश जी की चार लाइनो की सरल स्तुति



श्री गणेश जी की चार लाइनो की सरल स्तुति इस  प्रकार है :-

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,
लम्बोदराय सकलाय जगद्विताय ।
नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषिताय,
गौरीसुताय गणनाथ नमोस्तुते ॥



रोग से मुक्ति के लिए सिर्फ ३ शनिवार करें यह चमत्कारिक टोटका



शुक्रवार रात को मुठ्ठी भर काले साबुत चने भिगोयें। शनिवार की शाम काले कपड़े में उन्हें बांधे तथा एक कील और एक काले कोयले का टुकड़ा रखें। इस पोटली को किसी तालाब या कुएं में फेंक दें। फेंकने से पहले रोगी के ऊपर से 7 बार वार दें। ऐसा 3 शनिवार करें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा।




Thursday 1 September 2016

क्या आपके सपनों में बार -बार आते हैं आपके मृत संबंधी या मित्र - हो जाएं सचेत करें यह उपाय



कई लोगों के अत्यंत करीबी या निकट संबंधी जिनसे उन्हें अत्यधिक प्रेम होता है अक्सर मृत्यु के बाद सपनों में दिखाई देना आरम्भ कर देते हैं। ऐसा अक्सर मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है किन्तु यदि मृतक आपके सपने में बार - बार आ रहा है तो यह गंभीर बात है क्योंकि ऐसा अक्सर इसलिए होता है की मृतक की अंत्येष्टि सही तरह से नहीं हुयी और उसकी आत्मा को गति नहीं मिली और वह भटक रही है। इस कारण मृतक की आत्मा अपने किसी प्रिय विश्वास पात्र मित्र या संबंधी से संपर्क साधने का प्रयास करती है इसके लिए वह आत्मा व्यक्ति के सपने में आकर अपनी इच्छा प्रकट करती है या संकेत देती है यदि आपके साथ ऐसा होता है तो इन सपनों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे समस्या और भी जटिल हो सकती है क्योंकि जब तक मृतक की आत्मा को गति नहीं मिलती तब तक वह सपने में आती रहेगी हो सकता है अधिक समय तक अनदेखी करने पर आपका अनिष्ट भी करे इसलिए ऐसा होने पर सबसे पहले मृतक की आत्मा की शांति के लिए उपाय करना चाहिए जैसे श्राद्ध ,दान य अन्य अनुष्ठान इसके लिए स्थानीय पुरोहित की सहायता ली जा सकती है। यदि मृत व्यक्ति सपने में कोई इच्छा प्रकट करे तो यथा संभव उसको पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।  

श्री गणेश चतुर्थी पर अवश्य पढ़ें धनदायक श्री गणपति अथर्वशीर्ष - सभी मंगल कामनाओं की होगी पूर्ति



श्री गणेश जी को मंगल मूर्ति कहा जाता है क्योंकि जहाँ पर श्री गणेश की कृपा दृष्टि होती है वहाँ सब मंगल ही मंगल होता है।  श्री गणेश की कृपा पाने के लिए श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ बहुत ही लाभदायक माना गया है इसके नित्य पाठ करने से व्यक्ति को अपार धन, सम्पदा ,सुख, ऐश्वर्य , पुत्र,  पौत्र , सौभाग्य , यश , कीर्ति , आरोग्य , तीव्र स्मरण शक्ति , तर्क शक्ति , बुद्धिमत्ता आदि प्राप्त होते हैं। यदि यह पाठ श्री गणेश चतुर्थी से आरम्भ किया जाये तो उत्तम रहता है यदि आप यह पाठ प्रतिदिन नहीं कर सकते तो श्री गणेश चतुर्थी को तो इसका पाठ अवश्य ही करना चाहिए।

।।श्री गणपति अथर्वशीर्ष।।
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।
त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सं हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।
अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।
यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।
अथर्ववेदीय गणपतिउपनिषद समाप्त।।