शास्त्रो में बांस की लकड़ी जलाना मना है फिर भी लोग अगरबत्ती जलाते है। जो की बांस की बानी होती है। अगरबत्ती जलाने से पितृदोष लगता है।
शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता सब जगह धुप ही लिखा हुआ मिलता है। अगरबत्ती तो केमिकल से बनाई जाती है भला केमिकल या बांस जलने से भगवान खुश कैसे होंगे ? अगरबत्ती जलाना बंद करे सब पंडित लोग। पूजन सामग्री में जब आप यजमान को अगरबत्ती लिख कर देंगे ही नहीं तो जलाने का सवाल ही नहीं। इस सत्य से यजमानो को अवगत कराये। आजकल लोगो को पितृ दोष बहुत होते है इसका एक कारन अगरबत्ती का जलना भी है। अस्तु
पूजा साधना करते समय बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन पर सामान्यतः हमारा ध्यान नही जाता है लेकिन पूजा साधना की द्रष्टि से ये बातें अति महत्वपूर्ण हैं |
गणेशजी को तुलसी का पत्र छोड़कर सब पत्र प्रिय हैं। भैरव की पूजा में तुलसी का ग्रहण नही है।
कुंद का पुष्प शिव को माघ महीने को छोडकर निषेध है।
बिना स्नान किये जो तुलसी पत्र जो तोड़ता है उसे देवता स्वीकार नही करते।
रविवार को दूर्वा नही तोडनी चाहिए।
केतकी पुष्प शिव को नही चढ़ाना चाहिए।
केतकी पुष्प से कार्तिक माह में विष्णु की पूजा अवश्य करे।
देवताओं के सामने प्रज्जवलित दीप को बुझाना नही चाहिए।
शालिग्राम का आवाह्न तथा विसर्जन नही होता।
जो मूर्ति स्थापित हो उसमे आवाहन और विसर्जन नही होता।
तुलसीपत्र को मध्याहोंन्त्तर ग्रहण न करे।
पूजा करते समय यदि गुरुदेव ,ज्येष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आ जाए तो उनको उठ कर प्रणाम कर उनकी आज्ञा से शेष कर्म को समाप्त करे।
मिट्टी की मूर्ति का आवाहन और विसर्जन होता है और अंत में शास्त्रीयविधि से गंगा प्रवाह भी किया जाता है।
कमल को पांच रात ,बिल्वपत्र को दस रात और तुलसी को ग्यारह रात बाद शुद्ध करके पूजन के कार्य में लिया जा सकता है।
पंचामृत में यदि सब वस्तु प्राप्त न हो सके तो केवल दुग्ध से स्नान कराने मात्र से पंचामृतजन्य फल जाता है।
शालिग्राम पर अक्षत नही चढ़ता। लाल रंग मिश्रित चावल चढ़ाया जा सकता है।
हाथ में धारण किये पुष्प , तांबे के पात्र में चन्दन और चर्म पात्र में गंगाजल अपवित्र हो जाते हैं।
पिघला हुआ घृत और पतला चन्दन नही चढ़ाना चाहिए।
दीपक से दीपक को जलाने से प्राणी दरिद्र और रोगी होता है। दक्षिणाभिमुख दीपक को न रखे। देवी के बाएं और दाहिने दीपक रखें। दीपक से अगरबत्ती जलाना भी दरिद्रता का कारक होता है।
द्वादशी , संक्रांति , रविवार , पक्षान्त और संध्याकाळ में तुलसीपत्र न तोड़े।
प्रतिदिन की पूजा में सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढाएं।
आसन , शयन , दान , भोजन , वस्त्र संग्रह , ,विवाद और विवाह के समयों पर छींक शुभ मानी गयी है।
जो मलिन वस्त्र पहनकर , मूषक आदि के काटे वस्त्र , केशादि बाल कर्तन युक्त और मुख दुर्गन्ध युक्त हो, जप आदि करता है उसे देवता नाश कर देते है।
मिट्टी , गोबर को निशा में और प्रदोषकाल में गोमूत्र को ग्रहण न करे।
मूर्ती स्नान में मूर्ती को अंगूठे से न रगड़े।
पीपल को नित्य नमस्कार पूर्वाह्न के पश्चात् दोपहर में ही करना चाहिए। इसके बाद न करे।
जहाँ अपूज्यों की पूजा होती है और विद्वानों का अनादर होता है , उस स्थान पर दुर्भिक्ष , मरण , और भय उत्पन्न होता है।
पौष मास की शुक्ल दशमी तिथि , चैत्र की शुक्ल पंचमी और श्रावण की पूर्णिमा तिथि को लक्ष्मी प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का पूजन करें।
कृष्णपक्ष में , रिक्तिका तिथि में , श्रवणादी नक्षत्र में लक्ष्मी की पूजा न करे।
🌀अपराह्नकाल में , रात्रि में , कृष्ण पक्ष में , द्वादशी तिथि में और अष्टमी को लक्ष्मी का पूजन प्रारम्भ न करे।
🌀मंडप के नव भाग होते हैं , वे सब बराबर-बराबर के होते हैं अर्थात् मंडप सब तरफ से चतुरासन होता है। अर्थात् टेढ़ा नही होता।
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